गीत सोहणौ
साचौ विद्वान मनोहर सरमा,
सिरजण-धरमा सुकवि सिरै।
भाव अनूप सबद रस भरमा,
फरमा जस चहुंकूंट फिरै॥
‘गीतकथा’ वीरां जस गयौ,
मरण-तिंवारां प्रथा मही।
रहिया रूकहथा रणखेतां,
कीरत ज्यांरी जथा कही॥
जोड़ ‘अमरफळ’ ‘अंतरजांमी’,
घणनांमी री क्रीत घणी।
अध्यातम री जोत अमांमी,
बिन खांमी थिर लोय बणी॥
‘जय जननायक’ री जसगाथा,
लायक कंठां करण लखी।
वरदायक सुरसत रा वायक,
इळ फळदायक क्रीत अखी॥
‘अबळा’ री अरदास उचारी,
नारी साथ न्याव नहीं।
‘पंछी’ करुणा राग पुकारी,
सारी धरती सुणौ सही॥
आवै चीत मीत जद उर में,
हेताळू रस रीत हवै।
प्रीत गीत हंदी परमळ नै,
‘धोरां रौ संगीत’ ध्रवै॥
‘गोपीगीत’ अनै ‘गजमोती’,
ओपी ‘कुंजा’ गूंज इळा।
रसभर ‘फूल पांखड़ी’ रोपी,
कार न लोपी काव्य-कळा॥
‘आरजधारा’ डिंगळ इधकी,
‘रसधारा’ चित छाय रही।
थाट मनोहर सरमा थारा,
सारा ग्रंथ अमोल सही॥
सज एकांकि ‘नैणसी साको’,
‘रोहिड़ै फूल’ निबंध रहै।
‘सोनलभोंग’ कहाणी संग्रह,
‘कन्यादान’ समान कहै॥
‘मेघदूत’ संवाद मुरधरा,
लाखां इमरत स्वाद लियौ।
‘उमरखैयाम’ आद रौ ओपम,
कवि डिंगळ अनुवाद कियौ॥
सदा पत्रिका चावी सांप्रत,
‘वरदा’ ‘विश्वम्भरा’ वळै।
साहित री अज्ञात संपदा,
तूं सीधै सरबदा तळै॥
पसराई रसधार धरा पर,
लोक-साहित्य अपार लता।
कर उपकार कलम सूं कीना,
छांनां नै संसार-छता॥
लेख अनेक लिख्या लाखीणा,
दोष-विहीणा काव्य दखै।
संस्कृती डिंगळ साखीणा,
अरथां झीणा भेद अखै॥
‘अरावली आत्मा’ उपजाऊ,
हलक ‘बटाऊ’ संग हली।
बीकांणै सूं लेय बिसाऊ,
भलचाऊ री साख भलो॥
आछौ मनिखाचार ओपतौ,
नर साचौ अहँकार नथी।
विगतवार वेदज्ञ विप्र री,
कीरत धार-विचार कथी॥
वात ख्यात हरजस जस वीरत,
पेख्यौ धीरत धरम पकौ।
कवियण ‘सगत’ पयंपै कीरत,
थूं तीरथ जीवतौ थकौ॥