दूहौ

जेसांणै कविराज जो, रतनू कुळ गुण रास।
दिल सुध अळसीदांन रौ, पुणियौ गीत प्रहास॥]

गीत प्रहास

गुणां पारखू जेथ आदू हुवा गढ़पती,
धजाबंध राजकवि विरद धारू।
तौर साका जमर अमर कीरत तिकौ,
मही पिछमांण में देस मारू॥

नीपणां ख्यात इखियात कोटां नवां,
ग्रंथ मोटां महीं मिळै गाथा।
घाट सूं माड़ थळवाट आपांण धुर,
मांण राखण भड़ां दिया माथा॥

वरण च्यारूं थकां अलग चारण-वरण,
सूरमा डौढ़ जुध करण साहै।
रीझ रणवाट दुहुं राह में रेंणवां,
चीत खत्रवाट री रीत चाहै॥

वीररस अेथ अंगरेज री वार में,
सूर दातार में तेज सजियौ।
कवियणां निडर हुय साच गुण कत्थियौ,
वैण डिंगळ गिरा कंठ वजियौ॥

रतनुवां साख कुळ गांम बारट्ठ रौ,
डूंगरेची जठै मात देवी।
पिछम धर भांयकै पोकरण पटी में,
सुकवियां सुरसती घणी सेवी॥

माड़ मुरधर थळी ऊजळी मोट मन,
कवी अळसेस जस चहूं कांनी।
जोत उजियास कै बीज रै चंद ज्यूं,
मयादू प्रभा सह जगत मांनी॥

सकव हेतल-हरा धिनो पाबू-सुतन,
सुरसती कीरती रही साथै।
परायै काज कविराज अळसेस पण,
मदत की गरीबां वरग माथै॥

वरस चाळीस री उमर में वीभनौ,
जोत जगदीस री मांय जोपै।
राह दोनूं अनै छतीसां कोम रा,
अजे गुण वरणता जीह ओपै॥

चोर धाड़ेत अजरेल सह चंपता,
संकता पटाधर रैत सारी।
माड़ थळवाट रा मांनता मांनवी,
भूप आदर ब्रवे कुरब भारी॥

पीत रंग पोतियौ वेस ऊजळ पुणां,
ऊजळी बतीसी वरन आछौ।
ताकवां मौड़ कविराज अळसेस तौ,
सपूती पुन्याई थंभ साचौ॥

झुरै ठांहा मिनख छिनक इक झांक नै,
सुरग दिस भलां पाछौ सिधाजे।
रतनुवां वंस रा जस-कळस रेंणवां,
‘अळस’ कवि एकरूं फेर आजे॥11॥

स्रोत
  • पोथी : गीत गुणमाळ ,
  • सिरजक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : थळवट प्रकाशन, जोधपुर
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