किण दिस जावै पंखीड़ा, कुण डगर मुंडेर बतावै है

आप भरोसे पंख फरूकै, आभै नै बतळावै है

जठर अगन री तेज आँच पर मधरी मधरी भूख सिकै

डगर अजाण अफूकां रूँ है लियां चूंच में तिरस फिरै

करूड़ थार अर नुगरो आभो किण रै आडो आवै है

करम जतन री जुगलबंदी सूँ तल बैठ्यो जल तिरम तिरै

किण दिस जावै...

सोच लारली कांई करणी कांई करणी आगै री परवाह

दो दिनां रो खेल सांसां रो करम भरोसे खेलतो जा

आज है थारै हाथां में क्यूँ आज ने रोय गमावै है

जीत्योड़ां रा ढोल घुरावै इतिहास बतावै है

किण दिस जावै...

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी-मार्च ,
  • सिरजक : मनीषा आर्य सोनी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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