ओढ़ चून्दङ म्हैं तो गई रे सतसंग में

सांवरियो भिगाई म्हानै गैरा-गैरा रंग में

सोच रही मन में समझ रही मन में

थारो म्हारो न्याव होवैला सतसंग में

सत री संगत में गुरां सा बिराजै

कर-कर दरसण होई रे मगन में

सोच रही मन में समझ रही मन में

थारो म्हारो न्याव होवैला सतसंग में

सत री संगत में सांवरियो बिराजै

गाय-गाय हरि गुण होई रे मगन में

सोच रही मन में समझ रही मन में

थारो म्हारो न्याव होवैला सतसंग में

सत री संगत में ज्योति जगत है

कर-कर दरसण होई रे मगन में

सोच रही मन में समझ रही मन में

थारो म्हारो न्याव होवैला सतसंग में

मींरा बाई रा गिरधर नागर

भव जल पार उतारै पल छिन में

सोच रही मन में समझ रही मन में

थारो म्हारो न्याव होवैला सतसंग में।

स्रोत
  • पोथी : मारुजी लाखीणौं ,
  • सिरजक : कालूराम प्रजापति 'कमल'
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