म्हारै गीतां री नुंवली गीता बांचो अब

मैं नुवी भावना छंद जोड़ कर ल्यायो हूं

ग्यान करयो भेळो मैं सगळो जोड़-जोड़

अब नुंवा सबद मैं गूंथ-गूंथ कर गार्‌यो हूं

आं गीतां ने थे ग्यान समझल्यो गीता रो

मैं उणी ग्यान नै नुंवो रूप दे ल्यार्‌यो हूं

मैं किरसण हूं, मायावी हूं, अतरजामी हूं

इण खातर अब मैं नुवो रूप धर आयो हूं

मिनखाजूणी रो धरम पैलड़ो है

सुख सूं जीवै, सुख सूं पीवै, सुख सूं खावै

मिनखाजूणी रो करम पैलड़ो है

सुख सिरजण सारू धरती पर अन निपजावै

इण खातर मिनख पणो राखण थे त्यार हुवो

मैं कवि बण हेलो मारण आयो हूं

हर मिनख सुखी जद होवैलो, रळ-मिळ चालै

सै भणै-भणावै, समझै, जीवण रा लेखा

धरती मायड़ रै दुखड़ै नै मेटण सारू

सांयत रा आखा काज करै, बदळै रेखा

के लिख्यो? करम ने क्यू ठोको? की काम करो

फळ द्यूंला बण किरतार, इस्यो मनचायो हूं

मिनखजमारो ओजूं कदे आवैलो

इण खातर चेत जवानी मे, फळ पावैलो

अक्कल रो कारदो मतां करो खाली बैठ्या

धरती माथै खेती खड़ियां सुख पावैलो

मोट्यार कुहावो, सरम करो, स्रमदान करो

स्रम ने वरदान सदा में देतो आयो हूं

स्वारथ री मोटी लावां सू मतना बांधो

चड़स कुवै में डूब’र रीतो रैला

परमारथ धन संचै करल्यो इण जीवण में

ख्यातां रा पाना जुग-जुग सै बातां कैला

मत गरब करो, हिवड़ै में दिवलो चासो अब

मैं ग्यान नैण सूं देख्या, सत बण आयो हूं

मैं रामायण रो राम, किसन गीता रो हू

मैं परमारथ रै आसण पर वास करूं

मैं स्रम-सागर में सेसनाग सत रो राखूं

मैं मिनखपणो छोडणियै रो झट नास करू

इण खातर सुणो सांभळो थे इण हेलै ने

मैं जुग-जुग सू औतार धारतो आयो हूं...!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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