नीळा रे आकास्याँ छाँव धरती रे गळै
खेताँ बीचां काम करती पगतळ्याँ गळै
हाथाँ में डोकर्याँ, नुख नीळा रे पढ़ै
दंतेड़्याँ बौळे रे आछौ सिंयो रे पड़ै—नीळा रे...
माथा पै अे छाक आँख्यां मटकती चाळै
दांतळ्याँ—कुड़ैस्याँ सैंट्या चटकती चाळै
आधौ रे उगाड़ो तण लाज्याँ रे ढँकी
कोई छै मोट्यार, कोई उमर की पकी
सरपट—सरपट गीत गाती टोळ्याँ रे चाळै—नीळा रे...
आधौ ही उगाड़ो झाँळौ भायला को डीळ
चड़स्याँ भरताँ, पाणत करताँ, कांई लागै ढीळ
बाँकड़ळो हाड़ौत्यो ऊब्यो खेतां अर खळाण
सींइ ने सुकेड़ साके हिम्मत री कमाण
रंग—रंग का फेंट्या बांध्याँ मुळका तो चाळै—नीळा रे...
जुवार माता खेताँ सूँ अब खलाणा चाळी
मूंग—तल्ली बरस अब हटवाड़ा—चाळी
धूप न्हँ र्हे न्हाती नार्याँ कुतरणी करे
गहूं—सरसौं—आफू रूप देख—पखेरू मरे
धौळी फट चांदणी में रातां क्यों गळै—नीळा रे...
गावगै फरै तो भाभी उसाणौं भरै
दादो बाळ संग साथी—मुळकतो फरै
मोती—झौळ्याँ भर—भर में डाराँ भराँ
दाता की छै देण भाया कांई में डराँ
देसरो—गाड़ी रो पायो अस्यां ही चळै—नीळा रे...
गाँव—गाँव में सावा आया ब्याव भी मँडै
कहीं पै नंगाड़ा कड़कै, दरवाजा मँडै
आफू—की क्यार्याँ में बगुळा रूपाळा लगै
ठंड सूँ सुकड़ता जीव धूप में भगै
ज्यान में अकड़ता कहीं बराती चळै—नीळा रे...