टैम निकाळो दोय घड़ी थे

करल्यो मीठी बातां जी

दिन तो काट लेवां हां पिव जी

नहीं कटै अै लंबी रातां जी...

म्हैं थारी मरवण, थे म्हारा ढोला

प्रीतङली थोड़ी करल्यो जी

हिवड़ै आळो हेत पीया जी

हेत तो थोड़ो करल्यो जी

म्हारी बातां सुण-सुण कै

थे क्यूं अणसुणी कर रैया

विरह आळी प्रीत ना देखो

क्यूं निजरां नीची कर रैया

थां बिन म्हारो जीव ना लागै

क्यूं होग्या थे काठा जी

दिन तो काट लेवां हां पिव जी

नहीं कटै अै लंबी रातां जी...

लाल कसुमल रंग री

म्हैं चुनर ओढ़ कै आई हूं

झीणै घुंघट थानै निरखुं

लाज सरम बिसराई जी,

छैल भंवर सूं मिलबा तांईं

जोधाणा सूं जैपर आई जी

हाथां मांय हाथ लेयनै

मन री, सगळी बात सुणाई जी

पैली तो थे अेक सनेसै सूं ही

म्हासूं मिलबा‌ आता जी

दिन तो काट लेवां हां पिव जी

नहीं कटै अै लंबी रातां जी...।

बेगा थास्यूं मिलबा आस्यां

गौरी अईयां मत ना रूसो जी

म्हारी भी तो लाचारी नै

थे थोड़ी सी तो समझो नी

झिरमिर झिरमिर नैंण गौरङी

रातां में म्हारा बरसै है

थां स्यूं प्रीत करण नै सजनी

हिवङो म्हारो भी तरसै है

अबकै आस्यां थानै बतास्यां

जैपर वाळी बातां जी

दिन तो म्हे भी काट लेवां हां

नहीं कटै अै लंबी रातां जी...

दिन तो काट लेवां हां गौरी

नहीं कटै अै लंबी रातां जी...॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : ललिता राजपुरोहित 'चंद्रगौरजा' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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