म्हांरी माटी म्हांरी मा
भांत-भांत रै रंग री माटी, उपजावै है धान- बनस्पति,
सबनै देवै चुग्गो-पाणी, श्रम री मायड़ सब री संगी,
खेतां री है बास सुरंगी, नदियां सूं पाणी लेवै बा,
और चांद सूं चन्द्रकला, उजियारो लेवै सूरज सूं,
ऊर्जा जो है सगळां री म्हे सपूत बण इण माटी रा,
इण नै ही परणाम करां।
जुगां-जुगां री लियै दास्तां, करड़ी आ चट्टानां ज्यूं
निमळी बाग-बगीचां ज्यूं, फैलावै सुगंध आपरी
दूर पहाड़ां, दूर पठारां, झरणा इण रा गीत बखाणै,
नदी बखाणै नै संगम,
तीर्थ मोकळा होवै इण पर राम-रहीम री आ गाथा,
म्हैं सगळा इण रा ही बेटा
करां रुखाळी हरइक ठौर, बर्फीली चट्टानां ऊपर
तपतै तावड़ रेतां ऊपर
इण री साख सवाई रेवै, इण रै खातर जियां-मरा
ईरी पत म्हे राखांला।
इण रो सत म्हे पाळांला
म्हांरी माटी म्हांरी मा।