भावज लेल्यो म्हारो सारो बांटो आप रे,

अरजी म्हारी मत बांटो मायड़ बाप रे।

शंकर-पार्वती को जोड़ो मत बछटावो साथ,

तीरथ-बरत-नेम-जप-तप ये लेल्यां आसीर्वाद

थे चावो छो सुसराजी थांनै सासू ना भावै,

पण जोड़ायत के बिना लापसी पिवजी भी ना खावै

जोड़ो तोड़यां सूं मिलेगो थांनै श्रांप रे..!

ना मांगे ये पुआ पापड़ी, ना सीरा सागूणी,

मायड़ के तो तुळछी-थाणु, बापू चावै धूणी

भूख, तसाई और गरीबी सूं कदै घबराया,

म्हांका सुख के खातिर ही ये अब तक खटता आया

दुख-सुख काटया छै दोन्यां नैं इक साथ रे..!

मां पावन गंगा की धारा, बापू ग्यान सरोवर,

यां सूं ही पहचाण आपणी कुळ की मूळ धरोहर

भोर में सुमिरण सिंझ्या वंदन अर अनुभव की बातां,

गुजरै सारो दिन बच्चां में नीति-धरम सिखातां

पोता-पोत्यां में भरै छै संस्कार रे..!

बापू जद जीमण नैं बैठै, मां तो पंखो झळती,

मेहनत की रूखी-सूखी में रस अमरत को भरती

मां जद धार दुहारी करती, बापू बछड़ो पकड़ै,

इक-दूजा को हाथ बंटाता कदै आपस झगड़ै

चावै जनम-जनम को साथ रे..!

तड़कै थांनै भी बांटेगा थांका जाया लव-कुस,

जद थांनै अहसास होवैगो, गळत करयो छो सब-कुछ

पण पछतायां न्ह आवैगी, या बगत तो पाछी,

तड़कै थांसूं भी बरतेगी, बात मान ल्यो सांची

बूढा होणूं तो जगत में सांच रे..!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली तिमाही पत्रिका ,
  • सिरजक : जयसिंह आशावत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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