(गीत जांगड़ो)

भगतवसल री लीला भारी,
रूप अनंत रचाया।
मूरत सौणी है ममता री
अंबा नांव उपाया॥

नव महिणा रैवै अध निरणी,
पूत पेट में पाळै।
जायै रै सुख खातर जणणी,
गात आपरो गाळै॥

सकल रात गीला में सोवै,
सूखै पूत सुलावै।
आखी रात ओजको करती
आंख्यां नींद न आवै॥

आंसूड़ा वा पोंछ आपरा,
रूड़ी निजरां राखै।
दिवस पूरो हाजरी देवै,
थमै नहीं भल थाकै॥

लाडां कोडां रखै लाल नैं
अंतस नेह अपारा।
दु:ख में जद लाल नै देखै,
पुरसै नेह पिटारा॥

तोड़ बांध वै तकलीफां रा,
मन मांही मुसकावै।
प्रीत रीत सूं घर फुलवारी,
मधरी सी महकावै॥

ईस तणो अवतार कहीजै,
नित-नित शीश निवाऊं।
अनंत है आशीष आपरी,
जांमण वारी जाऊं॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मानसिंह राठौड़ ‘मातासर ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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