1 गीत – कपूत

कहियौ फरजंद न मानै काई, छक तरुणाई मछर छिलै।
महली नूं तो मिलै कमाई, माईतां नूं भूंड मिलै॥1॥

पढ-पढ ठीक सीख पड़वां मां, कड़वा वचनां दगध करै।
जीमै घी गोहूं जोड़ायत, मा तोड़ायत भूख मरै॥2॥

बरतै सोड़-सोड़िया बेटो, पैमद हेटौ बाप पड़ै।
मूंडां हूंत न बोलै मीठो, लालौ बूढां हूंत लड़ै॥3॥

सरवण न हुवै हियौ सिळावण, हियौ जळावण कंस हुवै।
थोथै काम कुटीजै थाळी, कळजुग राळी भांग कुवै॥4॥


2 गीत – सपूत

सरवण री रीत प्रीत सरसावै, चावै कुसळ ऊजळै चीत।
जाया भला धिनो-धिन जानैं, मानै कर तीरथ माईत॥1॥

हीड़ा करै हुकम में हालै, लाभ सपूती तणौ लहै।
माईतां राखै सिर माथै, रज पावां री आप रहै॥2॥ 

दाखै फजर भला मुख दीठां, मीठा वचनां न को मणां।
पोखै सद भोजन पूंगरणा, तन मन माता-पिता तणां॥3॥

साचै मन राखै घर सारू, बैठै सहज घणी बरदास।
बेटौ इंसौ मिलै जो विरळो, तिरळोकी मां कियां तलास॥4॥
स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : साहित्य अकादेमी ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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