जद तक तन में सांसां रैसी,

जद तक मन में आसा रैसी,

म्हें चाल्यां’ जाऊंलौ रै,

चाल्यां’ई जाऊंलौ रै।

बिन बैठ्यां अर बिना थम्यां

चाल्यां जास्यूं तेज चाल सूं,

बढ़-बढ़ कदम बढ़ास्यूं आगै

घणां जोस सूं, घणां चाव सूं,

मीठा-मीठा गीत जीवण रा

नूवां-नूवां गीत जीवण रा

म्हें गायां’ई जाऊंलौ रै,

गायां’ई जाऊंलौ रै।

कंवळी कळियां सामीं आसी

सुख रा बाग-बगीचां में,

हाथां में आज्यासी चीरा

रमतां-रमतां कूंचां में,

सुख नै गळै लगास्यूं म्हें

दुख नै गळै लगास्यूं म्हें

म्हें हांस्यां’ई जाऊंलौ रै,

हांस्यां’ई जाऊंलौ रै।

पग-पग पर परबत आसी

देख म्हनै ऊंचा उठ ज्यासी,

पाछौळ्यां धकावण खातर

गरजण करतौ सागर आसी,

घणां हिबोळा देसी पाणीं

अदबिच म्हनै डूबोवण तांणी

म्हें लांग्यां’ई जाऊंलौ रै,

लांग्यां’ई जाऊंलौ रै।

म्हनै रोकण तांण जगत का

सगळा दुस्मण अेक हुज्याजौ,

पेली सूं मारग कंटीलौ

थें फेरूं बाड़ां कर ज्याज्यौ,

म्हें घणौं हठीलौ जातरी

मंजिल म्हारी घणीं सांतरी

म्हें पायां’ई रैऊंलौ रै

पायां’ई रैऊंलौ रै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1995 ,
  • सिरजक : गिरधारीसिंह राजावत ,
  • संपादक : शौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री मासिक
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