बालम म्हारौ जियो नहीं लागै रे, यौ तन अठै मन थांणै सागै रे
सावण जाणै फागण आवै, धड़कनां नित थांनैं मांगै रै
बिन पतंग री डोर ज्यूं रैगी, बिण पाणी री माछली व्हैगी
कंचन काया रूप यौ फीकौ, जिनगाणी बिन रंग री व्हैगी
बालम हारी ओळ्यूंड़ी आगै रे।
बालम म्हारौ जियो...
काजळिया री कोरां गमगी, मेहंदी रचणी नैण में रचगी
टिकळी, सन्दूर म्हैं खोया अभगण, सूख्या होटां पै पपड्यां जमगी
जोबण म्हारौ छोड़ी नै भागै रे।
बालम म्हारौ जियो...
खाऊं कटारयां आंसू पीऊं, आस रा कपड़ा नित उठ सीऊं
सेजां री करवट सुळगावै, बोली कन्त म्हैं किणबिघ जीऊं,
बोळौ पपीहौ काळजौ दागै रे।
बालम म्हारौ जियो...
सीयाला मं तन कळपावै, ऊनाळौ अंग-अंग उकळावै
बारहमासी नैण में बरखा, पतझड़ नित सपणा मुरझावै
दिन नीं कटै रातां जागै रे।
बालम म्हारौ जियो...