भूखा मरता मिनखा री, पासळिया चिपगी

सुणज्यो नेताजी।।

भूखा सोवा भूखा उठा पापी पेट बोलै ओ।

रीसा बळतो गुपत घर रो, भेद खोलै ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

जनता ऊभी रोवै सारी मरबा खातर चाली ओ।

आपर कींकर काना में आंगळिया घाली ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

हाका कर-कर हेला मारा, रो-रो पलका गळगी ओ।

महंगाई में बिन आया जवानी ढळगी ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

सोनो तो सुपणों बण रहग्यो चांदी पड़गी गोड़ा में।

देस नै अड़ाणै धरद्यो कर-कर होड़ा में।

सुणज्यो नेताजी।।

तेल नै भैरूजी पीग्या धान धरती गिटगी ओ।

खाण-पीण री चीजा माथै, पड़गी पटकी ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

बिना बादळ बिजळी गरीबा माथै कड़की ओ।

मिनखा रै जीवण री सब उम्मीदा मिटगी ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

आजादी रै ब्याव में चोरा री जान आई ओ।

ठग तो आया मोहरै पल्लै नहीं पाई ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

पाट्या पढ़ता आजादी चवरया में राह हुगी ओ।

जिण-जिण नै धणिया बिन सूनी लोगा भोगी ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

गरीबी मिटज्या फटकारै मारो झटपट झटको ओ।

भैळा कर सिगळा नैं माथै बग्ब राळो ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

झपड़िया सूं छाटा लेवै बारा महल छूटै ओ।

पाप सूं भरियोड़ा आखिर घड़िया फूटै ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

काम पड़वा जनता रै काठा चीचड़ ज्यूं चिप जावो ओ।

गरज मिटी अर पांच बरस नेड़ा नीं आवो ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

तसगरिया नैं पकड़ण वाळा तसगरिया रा बाप ओ।

रात-दिवस नग्गद नारायण जप्पै जाप ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

भुवा सूं थां चोर मराओ चोर भुवा रा भाई ओ।

थे बैटा दिल्ली में म्हारी मौत आई ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

डाक्टर अर कंपोडर सारा पग लिछमी रा सेवै ओ।

मरीज पड़्या माचै में रोवै पल्ला लेवै ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

रासन में विदेसी धान देसी कींकर काकरियो।

रात नै रळाय देवै चोर खापरियो।

सुणज्यो नेताजी।।

चेत सको तो चेतीज्यो विकराळ आंधी आवै ओ।

आजादी रो ब्यावलो कल्पित कथ गावै ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

भूखा मरता मिनखा री पासळिया चिपगी ओ।

सुणज्यो नेताजी।।

स्रोत
  • पोथी : मुरधर म्हारो देस ,
  • सिरजक : कानदान ‘कल्पित’ ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन
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