मन री बात कथीजै कोनी!
सैंसूंसैंस सबद, सब हार्या!
छन्दां बंधै न भाव विचार्या!
अरथ विचारा घुटे, अमूझे!
मारग अेक न जाणै, सूझै!
गूंगौ गुड़ ने कियां बखाणै?
आंधौ रंग-रूप के जाणै!
पांगळिये सूं ऊंचै-परबत
सा’रे बिना चढ़ीजै कोनी!
मन री बात कथीजै कोनी!
कितरा गीत, कंठ चढ़ धाप्या!
रागां में रळ, धूज्या, कांप्या!
सांसां रा सुर ऊंचा-नीचा!
चाल्या, धरमजळां-धरकूचां!
भाव भर्या अर वीण बजायी!
झिणकारां सूं बात सजायी!
जाणै, क्यूं कथना री मरवण-
गीतां उपरां रीझै कोनी!
मन री बात कथीजै कोनी!
कितरी भाषावां टेटोळौ
कितरी बोल्यां नै पंपोळी
जुग-जुग करतां, सदियां बीती!
पण न कथीजी, मन री चींती!
होठां रै नेड़ी-सी आवै!
पछैं, बोलतां क्यूं डरपावै?
जाणै, क्यूं दुनिया री भासा-
उपरां हियौ पतीजै कोनी!
मन री बात कथीजै कोनी!
जीभ, जठै गूंगी बण जावै!
नैण, बापड़ा आडा आवै!
मुळक भरै, आंसूड़ा झारे!
कथ-कथ भेद, भरम रा हारै!
मन री बात, कियां, कुण जाणै?
मन री गत तौ मन-ई जाणै!
इण खातर मन रा गीतां रा-
सागी छन्द रचीजै कोनी!
मन री बात कथीजै कोनी!