सुण लै रे म्हारा मन रा मीत,
गीत-गीत में प्यासी प्रीत, बंजड़ धरती बादळ रीता,
आख गई कोयल री भीग, आस गई सपना री रीत
साजन थारी मेघ-मल्हारा, भूल गई सारौ संगीत
सुण लै रे म्हारा...
भाव डूबग्या सबद टूटग्या, भूल गई धड़कन हर ताळ
उमग हिया री सांसां गिण-गिण, तोड़ रही प्राणां रौ जाळ
छंद, सोरठा, गजल, गीत भी, भूल गया सुर-लय री लीक
सुण लै रे म्हारा...
फूल कागजी सौरम मांगै, दरखत खड़ा मुखौटा ओढ़
कळियां रौ जीवण साखां सूं, पूछ रह्यौ इज्जत रौ मोल
रस रा लोभी भंवरा अब तौ पल मांही दे जावै पीठ
सुण लै रे म्हारा...
दीवा रोवै जुगनू चीखै, चातक रोवै आंसू धार
भूख गरीबी बेघर भटकै, लाज बैठगी तंगा खा’र
जाणै कद या उमस मिटैली, नफरत री हटसी या भीत
सुण लै रे म्हारा मन रा मीत, गीत-गीत में प्यासी प्रीत