घर तो आपणौ घर होवै है

सगळां री नैया खेवै है

हर कीनै घर आतां ही

कितरी मिळे वा सुख साता ही

घर आखो ही सुरग होवै है

घर तो आपणो घर होवै है

सगळा पंछी उड-उड आवै

आकास्यां सूं मुड़-मुड़ आवै

नानो-सो संगम होवै है

घर तो भाई घर होवै है

नौ खण्ड्यो वे के इक खण्ड्यो

इक खण्ड्यो वे के नौखण्ड्यो

कितरी कितरी हुड़क होवै है

घर तो आपणो घर होवै है

दो दाणा रो खाणो होवै

दो दिन रो ही आणो होवै

कितरो-कितरो सुख देवै है

घर तो आपणो घर होवै है

कितरा कोई काढे आंटा

फूल जसा लागे है कांटा

घर तो जादूगर होवै है

घर तो आखो सुरग सेवै है।

सबरो ही सपणो होवे है

अपणो बी अेक घर होवै है

हर ज्यूं पीड़ा हर लेवै है

घर तो भाई घर होवै है

सुरग भी मानां यो होवै है

नरक भी मानां यो होवै है

नी मानां म्हा तो पण होवै है

घर तो आपणो घर होवै है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मार्च-अप्रैल 2007 ,
  • सिरजक : रेखा व्यास ,
  • संपादक : लक्ष्मीकान्त व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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