दुनिया है अेक समंदर,

छोटो सो टापू म्हारो घर,

मां ममता री अेक नदी।

वड़ सरीखा दादाजी रै

स्वर में भरयो मिठास

पानो पानो, ओळी ओळी

आखर आखर इतिहास

लोक कथावां री पोथी सी

या गीतां री गजरो

सांस-सांस में प्रीत भरियोड़ी

दादी अेक सदी!

मां ममता री अेक नदी!

भाई रै घर रो उजियाळो

भाभी चांद रो टुकड़ो

बार-बार गाईज्यै अेड़ै

मुधरे गीत रो मुखड़ो

बहन म्हारी पूजा रो दिवलो

उण रा बोल आरती

पिता पकड़ पतवार चलावै

इण कुणबै री नाव लदी!

मां ममता री अेक नदी!

स्रोत
  • पोथी : म्हारी मायड़ ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • संपादक : मीनाक्षी बोराणा
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