सौ-सौ जोडूं हाथ ये मायड़, लाम्बा जोडूं हाथ ये मायड़।

मत म्हां हिरदो तोड़ ये।

गड़ादे म्हारी मायड़ली, म्हनै अळगोजा री जोड़ ये॥

आच्छी म्हारी जरणी, थन्नै सोगन मारा दादा री।

तुरत गड़ादे अळगोजा, म्हारे मन घणी बगाबा री।

कांकड़ गूंजे घर गूंजे, गीतां री गुड़दौड़ ये॥

लोहा रा भारी गूंजे वे, मंदरा बागे पीतळ रा।

मूं सोना चांदी रा नी मांगू, गड़ादे म्हने नरसळ रा।

मेळ मांहे धूम मचास्यूं, बागे होड़ा-होड़ ये॥

बिछूड़ा री राग जद, कोयलियां कूंकाऊलो।

खेतां, मंगरे, रातां माहीं, लहरां घणी उठाऊंलो।

रागां रमसी साथीड़ां, वे हिरदा रे हर जोड़ ये॥

ना ही गड़ाया अळगोजा, मूं घर उधम मचांऊलो।

खेतां ढांडा चरसी, मूं भेरवाळ करवाऊंलो।

आगी म्हनै रीस तो, मूं पग-पग करस्युं खोड़ ये॥

थारी सोगन मायड़ली मूं, नितका भणबा जाऊंलो।

काम काज हाथ बटास्यूं, छन सब कर आऊंलो।

कदे कह्यो नी टाळूं थारो, काम करुं मूं दौड़ ये॥

स्रोत
  • पोथी : बाड़यां रा फूलड़ा ,
  • सिरजक : मोहन मंडेला ,
  • प्रकाशक : मण्डेल प्रकाशन शाहपुरा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै