तो तारां री परछांई

इणनै मोतीड़ा मत जाण

इण री करलै तूं पहचाण

हंसला रे बावळा रे!

तट री पत छोड्या घणहाण!

हंसला रे!

तो लोट्यां री चनणाई

आंनै दीवटिया मत जाण

आं री करलै तूं पहचाण

आगिया रे बावळा रे!

थारो जाय बिरथ बलिदाण

आगिया रे...

तो मरुधर री उजळाई

इण नै पाणीड़ो मत जाण

इण री करलै तूं पहचाण

मिरगला रे बावळा रे!

तूं भज भज तज मत प्राण

मिरगला रे!

तो सावण री पिछवाई

इण नै काळी घटा मत जाण

इण री करलै तूं पहचाण

मोरिया रे बावळा रे!

उडीकै किण नै छत्तरी ताण!

मोरिया रे...

तो घास ढक्योड़ी खाई

इण नै चारा घर मत जाण

इण री करलै तूं पहचाण

हाथिड़ा ने बावळा रे!

तन्नै लोभ बंधासी ठाण!

हाथिड़ा रे...

तो दो दिन री तरुणाई

इण नै अमर अखी मत जाण

इणरी करलै तूं पहचाण

भाईड़ा रे बावळा रे!

थारै माथै मोत मंडाण

भाईड़ा रे...

स्रोत
  • पोथी : मोरपांख ,
  • सिरजक : ओंकार पारीक / ओंकार श्री ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य अकादमी (संगम) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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