मालण! फूल फूल रौ मोल करणौ चोखौ कोनी अे।

कंवळी कळी-कळी रौ तोल करणौ चोखौ कोनी अे।

कळियां नै क्यूं बाट चढावै, भंवरा री काया कळपावै,

थारै घर रौ थाट सजावण, रुत री क्यूं तूं हाट लगावै

लोभण! बाग-बाग सूं खोळ भरणौ चोखौ कोनी अे।

गळी-गळी बैठ्या सौदागर, जितरा मिंदर उतरी झालर,

घाट-घाट पर मत जावै तूं, नाडी-नाडी पाणी पालर

जोगण! देव-देव रौ ध्यान धरणौ चोखौ कोनी अे।

सगळा चादर में सोबाळा, सां रै आगळ लागै ताळा

मन रा पापी तन रा तापी हाथ उठावै भगवत माळा

भोळी! जणा-जणा री पोळ चढणौ चोखौ कोनी ओ।

धरती नाचै, फागण आवै, अंबर गाजै, सावण आवै,

मेळौ लागै, जु. जातरी, झांझर बाजै, साथण आवै

गोरी पिणघट पिणघट नीर भरणौ चोखौ कोनी ओ।

जां रौ रगत बणै है पाणी, बां रै खावण कोनी धाणी,

जां री मैणत माटी सोनौ, बांरी काया चढगी घाणी

तेलण! तिलां-तिलां रौ तेल भरणौ चोखौ कोनी ओ।

इक मूरत मिंदर में धरलै, इक सरवर सूं गागर भरलै,

इक बर तेज चढा जोबनियै, इक आंगण में नरतन करलै

गजबण! गळी-गळी में रास रमणौ चोखौ कोनी अे।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच राजस्थानी भासा अर साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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