घूम रही छै जिंदगाणी बस चाक पै
वै का वै ई तीन पान छै ढाक कै
सीरावण में बासी रोटी
पढबा नै ताजा अखबार
आसपास भूगोल भूख को
दुखती दहती घर की नार।
बारखड़ी सारी उदास छै
कात्यो-कूत्यो-सब कपास छै
मोर्यो पग देख्यां रोवै कै रीझै पांख पै।
सांझ जस्यां कोई ऊंधी बागळ
रात जस्यां घुग्घु की बोली
अस्यां कटी दोपहर्या जाणै
मंगरै बैठ बिलाई रोली
जिंदगाणी बेताळ पचीसी
रूंख ऊपरै लास टंगी सी
केई गिद्ध भेळा होग्या आकास पै।