धडकी कच्छ री धराह, कडकी पीठ कमठ्ठरी।
हाली शेष सिराह, हाथ बढा तू मानवी।।
डोली शेष फणाघणा मिनख भखिया इला।
दिन ऐ विपदा तणा, हाथ बढ़ा तू मानवी।।
ढस्यां कंगूरा कोट गढ़, गोखां, अंजार, भुज।
लेती किण री ओट, हाथ बढा तू मानवी।।
देता जे जुग हाथ साथ, बाथ भर चालता।
विपद पड़ी उण माथ, हाथ बढा तू मानवी।।
रह्या धरा पर सोय, ओढ़ आकाशी कामली।
स्वजन नहीं उण कोय, हाथ बढा तू मानवी।।
जो थारा स्यू होय, मदद कर चुके मति।
मानवता रही रोय, हाथ बढा तू मानवी।।
संकट आयो आज गाज, गिरी गुजरात पर।
राख मनुज गुण लाज, हाथ बढा तू मानवी।।