रे भोळा, सुण गोपाला, धरती पड़ी उजाड़ रे।

बेडोळी माटी नै मूळा-धन्ना आज संवार रे॥

तावड़ियै नै बिसार बावळा

खुरपा कसिया सांभ ले।

लूआँ रा बळता खीरा नै

छाती ऊपर थाम ले॥

लगा मढोठी, किसना-चाँदा, पग-पग बूझ उपाड़ रे।

धरती पड़ी ऊजाड़ रे॥

भर-भर ढेला फावड़िया

ऊँची-नीची पाट दे।

झाड़-झाँखरा बाँवळियाँ नै

गिण-गिण बीरा काट दे।

जोतण री रूत आई हरखा, कर धरती रो लाड़ रे।

धरती पड़ी ऊजाड़ रे॥

सूनो आभो दीसै, डर्‌यै

सगळा लोग लुगाई रे।

देख कळपता टाबर टीमर

आँखड़ल्याँ भर आई रे।

माँड माँडणा जिगरा भाई, कूई में घी ढाळ रे।

धरती पड़ी ऊजाड़ रे॥

मोठ बाजरो पाकै लाडो,

गोफणिया उछाळ रे।

काँकड़ माथै घूमै हाळी

टीड्याँ सूँ रूखाळ रे।

आँधड़ल्याँ झंझा रै आगै द्‌यो टोळ्याँ री आड़ रे।

धरती पड़ी ऊजाड़ रे॥

पूजा करता रूंठै बादळ

तो पूजा नै छोड़ दे।

माण करै आभै रो राजा,

तो बांरो बळ तोड़ दे।

मैनत पूज, आड नद्‌याँ सूं, लाँबी नैय्या पाड़ रे।

धरती पड़ी ऊजाड़ रे॥

हिम्मत मत हारीजै, तेजा

भाग जोवतां आवैला।

सींच हियै रा मोती मेघा

माटी अब मुळकावैला॥

खेतां में लुळ झोला खासी, मूंग जड़िया माल रे।

धरती पड़ी ऊजाड़ रे॥

बेडोळी माटी नैं मूळा-धन्ना आज सँवार रे॥

स्रोत
  • पोथी : अधूरे गीत ,
  • सिरजक : हरीश भादानी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान पुस्तक गृह, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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