बिगड़यो जरा-जरा सी बात पै

मेरो जीवन चलेगो हात सै

सांझ पड़े मैं घर कू आयो

मोसे पूछी खां जा आयो

कुण कै आगै सीस झुकायो

कुण की पगचम्पी कर आयो

कुण का हक मं ठाडो पायो

कुण-कुण सूं या भेद छिपायो

बौरा दै दै सही-सही बात खै

मेरो जीवन चलेगो हाथ सै

ताळो लग्यो जबां पै पायो

मैं जवाब नहीं दे पायो

मोसूं रूंस चलेगो भायो

मैंने भारोई मनायो

भांत-भांत समझायो

या बगद नहीं आयो

मैंने फिर बिसवास बंधायो

पूरो कौल करार करायो

अब रहूंगो मैं आदमी की जात पै

मेरो जीवन चलेगो हाथ सै।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : प्रभात ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान
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