उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ

उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ

तावड़ा सै छियाँपताई खेलरी है छाँवळ्याँ

करसो दांता-पास संभाळे, खाती रूँख कटावै

हर्‌यो हर्‌यो छै घाँस मेर पै ग्वाळ कचक्च्याँ खावै

मूँगफली का दाणा खाढे आंगणां म्ह डोकरियाँ

उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ...

नुई तोड़ म्ह तल्ली बोयी या बैरण जम जावै

साहुकार सूँ कोल कर्‌या जै जस्याँ तस्याँ नम जावै

घरहाळी की झुमकियाँ छूटै अर जीजी की तागलियां

उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ

परबत की छोरियाँ समदर सूँ हलबा मलबा चाली

गेला म्ह धरती-की झोळी अन्न धन सूँ भर चाली

कुओ पाळ पै भरै छलांगाँ, उफणी उफणी बावड़ियाँ

उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ

उडद मूँग चौंळी नै जद मक्का की कमर झँझोंड़ी

जामण की या दसा देख भरड़ा नै मूँछ मरोड़ी

चुटकी सोयाबीन बजावै, सणबीजा की पायलियाँ

उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ

तू बरसी तो मीठी होगी कड़वी लीम नम्बोळियाँ

जोबन पै इतराबा लागी जामुण और खज्यूरियाँ

जतनी ढाँके उतनी उघड़े, कांख म्ह घटावळ्यां

उतरी रे उतरी देखो डूंगराँ पै बादळ्याँ

स्रोत
  • सिरजक : राम नारायण मीणा ‘हलधर’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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