खड़्यो-खड़्यो ललकरूँ थानै, सुपनै रा संसार।
देखूं म्हारी धरती से अब, कुण लेवै सिणगार॥
माटी री मीठी सौरम में, बीज भीजग्या सारा।
कूंपळ रै उजळै होठाँ पर, कु-छिपग्या अँधियारा॥
हेलो मारे आज रूँखड़ा, छइयाँ भी मुस्कावै;
नई जीवणी री वाणी में, बिरखा झिर-मिर गावै॥
आज उदासी रा बादळ तो, चल्या गया उण पार।
देखूं म्हारी धरती रो अब, कुण लेवै सिणगार॥
बढ्यो जमानो आगै-आगै, पाँव पड़ै ना पाछो।
सिरळ-भिरळ सै हुया सूगला, चिमकै आछो आछो॥
दीपक थर-थर बुझग्यो, किरणाँ नयो चानणो ल्याई,
धरती री करड़ी काया पर, करसै ली अँगड़ाई॥
कान खोल के सुणल्यो अब तो, धरती री हुङ्कार।
देखूं म्हारी धरती रो अब, कुण लेवै सिणगार॥
बाजण लागी पैंजणियाँ, बिजळी अब घूमर घालै॥
खेताँ रै गैलै पर हाळी, मदरो-मदरो चालै॥
कदै पिछाड़ी, कदै अगाड़ी, डगमग पग सरकावै॥
काँधे ऊपर जेळी धरके, तेजो टेर सुणावै॥
बाँह पकड़ के सागै-सागै, चलै मुळकतो प्यार॥
देखूं म्हारी धरती रो अब, कुण लेवै सिणगार॥
चाँद और ताराँ सूं भरियो, मौज करे गिगनार,
किरणाँ लियां चाँदणी गावै, गीत दूधिया धार॥
सुगण मनावै, पिया रिझावै, रातड़ली में नार,
साँझ सवेरै भँवरा भिणकै, भीणी सी झंकार॥
समझ गया म्हे धरा बतावै, जीवण रो आधार॥
देखूं म्हारी धरती रो अब, कुण लेवै सिणगार॥