जीवण जग-जंजाळ

जगत सुपणै री माया है।

बीत गये दिन ढळते

दिन री ढळती छाया है॥

हाट-हाट पर ठग सौदागर लाग्या ठीक ठगाई में।

गहळ नसै में घणा ठगीज्या जीवण-बिणज कमाई में।

करम कमाई घाटो लागो

मूळ गमाया है।

बीत गये दिन ढलते

दिन री ढळती छाया है॥

हरख्या निरख्या नैड़ा सिरक्या हिवड़ै री अळियां-गळियां।

चख-चख कर टोळी सू टळग्या लोग बतावै आंगळियां।

प्रीत तणी पत गई जगत रा

लोग हसाया है!

बीत गये दिन ढलते

दिन री ढळती छाया है॥

बदळ गई पतवार्‌यां सागण खेत बदळ गिया हाळी।

बाग-बगीचा ठौड़-ठिकाणै रूख बदळ गिया माळी।

टोळी रा पंछीड़ा टळग्या

चित भरमाया है।

बीत गये दिन ढलते

दिन री ढळती छाया है॥

गळो भरीजै नाम लेवता सुर बिन गीत कियां गाऊ।

बळती सांसा नैण उबळग्या मर-मर जगत जियां जाऊ।

पलका री गागर में सागर

जळ भर आया है।

बीत गये दिन ढळते

दिन री ढळती छाया है॥

स्रोत
  • पोथी : मुरधर म्हारो देस ,
  • सिरजक : कानदान ‘कल्पित’ ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन बीकानेर
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