थारै लारां हाथ करोड़ाँ,

तू तो दाग्याँ जा’रै गोळा।

तन में राख रै चण्डी मैया,

हौठाँ पै बम्बभोळा॥

यूँ बोलै कण—कण माटी को

इतियास नुवो तू मँडवाज्ये,

बैर्‌याँ की मूंड्याँ पकड़ रगड़

पैली तो जूत्याँ चटवाज्ये।

मुण्डां की माळा पै'र गळै

तू ले’र तिरंगो बड़जाज्ये,

म्हां खावाँ सौगन बेटा की

चिन्ता पाछै की मत लाज्ये॥

पौळ कुंवारी परणांवैगां

दैंगां दैंगी रोळा।

धोखा बाज गण्डकड़ो छै

पछै सूं टांग्याँ पकड़ै छै।

न्हं लाज शरम ईं नकटा कै,

हार्‌याँ पाछै बी अकड़ै छै।

दुतकार भगाद्ये महासगति

माथो पाँवां में रगड़ै छै,

अपरेसन मांगै टांट गांठ

जै नत आपण सूँ झगड़ै छै॥

अस्यो करां अपरेसन अबकै

नाम नसाण न्हं छोड़ां।

चट्टाणाँ चटक—चटक चटकै

महिमां गुस्सा की भारी छै,

तूफान पगाँ मैं पड़ रोवै

तू अस्यो गजब बळधारी छै,

हिवड़ा में भारतवास्याँ ने

थारी तसवीर उतारी छै,

जे रगत बहर्‌यो बूंद—बूंद

कलम मांडती आरी छै,

अपमान करै कुरबानी को

तो, टांट्या बणकै भंभौळा।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : प्रेम शास्त्री ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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