उड़े रंग ने गुलाल, वाजे ढोल ने कुण्डी रे।

आव्यो फागण वारो वायरो ने आवी गई होळी।

होळी ना स्वागत रूखड़ं पानं-पानं अे गिरवी दयं।

आंबा-महुडा लदी पड़्या ने खाकरे रंग अेवो फेरवी दयं।

हली-मली सब रंग रमो गैर दौड़ी।

आव्यो फागण वारो वायरो ने आवी गई होळी।

राता-पीरा घणाअे रंत म्हैं घोर्‌या काया ने साथे।

प्रेम ना रंग मअें अैवा गुताणां हेंड़ो करम ने साथै।

वैर-भाव भूलो भाई हइयू हहया थकी जुड़ी।

आव्यो फागण वारो वायरो ने आवी गई होळी।

रातो रंग साट्यो है बल मजी मुं राती राती थई गई।

सांमी झार ना छुड़्या फांदा मुं आवती जाती थई गई।

गैरिया चोरा माथे, हुंजे भांग नी लोढ़ी।

आव्यो फागण वारो वायरो ने आवी गई होळी।

लाव्यो मामो ढूंढ़ीयू ने झबला-टोपी लावे भुआ।

अमल, कसुंबा, पापड़ी ने, भेगा-भेगा मालीपुआ।

वारिया उतारे छोरं वांटुड़ियो अे फोड़ी

आव्यो फागण वारो वायरो ने आवी गई होळी।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : महेश देव भट्ट ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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