हेली, चन्चळ रहवै भूंरो।

होसी कैय्यां कारज पूरो॥

उड़ कर जाऊं पुहुप हेत लख, काळजियो गरणावै।

तितळा कामणगारा घूरै, तन हुळसै तरणावै।

ओढ़ पांखड़ां जागूं रातां, भौर भान भरणावै।

रस पीयो पण कस नीं आयो, सूख हो गयो छूरो॥

यो भी करल्यूं ऊं भी करल्यूं, पण कीं ना कर पाऊं।

ईंनै धरल्यूं ऊंनै भरल्यूं, चक्कर में चकराऊं।

बीती उमर बध्या लेवणिया, देख घणो घबराऊं।

हुया सतंगा ढीला सारा, विरथ फिरो बण सूरो॥

भागमभाग भचेड़ां भूळां, भरमावै भव भारी।

बधतो जावै करज करम रो, कैय्यां चुकै उधारी।

मीत मिल्यो ना मन रै माफक, जूण घुळादी सारी।

जबर जतन कर जीव रंदोळो, पण सब कहे अधूरो॥

सांसां थिर नी रहवण पावै, आसण लगै कोई।

उछटै चित्त नींद उड़ जावै, भाव जगै ना कोई।

खुद ही खुद नै ठगतो रैवूं, और ठगै ना कोई।

जाऊं जितरो नेहड़ो ऊं रै, उतरो लागै दूरो॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन ,
  • संस्करण : अंक 36
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