आमीरस बरसातो गावै, चाल कीलिया बगतो ढाण।
जीवण री बाड़ी नै सींचां, बेगो बेगो बळद्या टांण।।
छिण छिण रो है मोल दुनी में, खा गोता जीवण रस लूट।
राव रंक रो भेद नहीं है, सो जग जोर्यो बेपरवाण।।1।।
जिनगानी री बाड़ी फूली, तोड़ फूल जग चरणां चोढ।
सुगरथ करतो चाल बटाऊ, छेलो यो तन देणो छोड।।
तेरी सार कमाई रो जळ, सदा ओपसी जग रै घाट।
मुरझायां तेरा तन-फूलडा, सोर्या सुरै ने बिखर्या खोड़।।2।।
जीवण-पथ पै घणा बटाऊ, खोज माँड न्यारा-न्यारा।
चाल्या, चालै जग-रस पीता, ठोड ठोड रुकता प्यारा।।
मुड़ मुड़ जोवै घणा सोवणा, लागै निज करतब रा खोज।
दुनिया देखै नितकी हरखै, भाव सुमन चोढै सारा।।3।।
जग झूठो या काया जाणी, ग्यानी ध्यानी समझावै।
जीवण-पथ पै भलकामां रा, रूंख उगाता बै जावै।।
जिणं री छायां बैठ जाणिया, सुसतावै लेवै या सीख।
पर सेवा अर सुगरथ नर रा, अमर गंध ज्यूं गरणावै।।4।।
चलणो है मंगळ रो दाता, चलणो है जीवण री माळ |
चलणो है मिनखै रो मुरतब, चलणो है प्रगति रो खाळ ।।
सूत्योड़ा री जणै पाडिया, जाग्योड़ा रो जागै भाग।
सत करमां री पोट बांधकै, चाल बटाऊ चाल्यां चाल।।5।।