आयो इंगरेज मुलक रै ऊपर,

आहंस लीधा खैंचि उरा।

धणियां मरे दीधी धरती,

धणियां ऊभां गई धरा॥

फोजां देख कीधी फोजां,

दोयण किया खळा-डळा।

खवां-खांच चूड़ै खावंद रै,

उण हिज चूड़ै गई यळा॥

छत्रपतियां लागी नँह छाणत,

गढपतियां धर परी गुमीं।

बळ नँह कियो बापड़ा बोतां,

जोतां-जोतां गई जमीं॥

दुय चत्र मास वादियो दिखणी,

भोम गई सो लिखत भवेस।

पूगो नहीं चाकरी पकड़ी,

दीधो नहीं मड़ैणो देस॥

वजियौ भलो भरतपुर वाळो,

गाजै गजर धजर नभ गोम।

पहिलां सिर साहब रो पड़ियो,

भड़ ऊभां नँह दीधी भोम॥

महि जातां चींचातां महिलां,

दुय मरण तणा अवसांण।

राखो रै किहिंक रजपूती,

मरद हिन्दू की मुस्सळमाण॥

पुर जोधाण उदैपुर जैपुर,

पहु थारा खूटा परियाण।

आंकै गई, आवसी आंकै,

बांकै आसल किया बखाण॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : बांकीदास आशियो ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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