काठो राख काळजो क्यूँ तू डर-डर कै भागै,
कांई मोल अंधारै को ईं सूरज कै आगै।
मानी थारी बात हाथ नै हाथ नहीं सूझै,
पर तू है मोट्यार अंधारै सूं कांई धूजै।
रात जरा सी बाकी बीत जावैली ठोरां में,
नुआं नुआं सुपना बुणतो जा नैण कटोरां में।
निरभै सोज्या रै पंछीड़ा ईंया कांई जागै,
कांई मोल अंधारै को ईं सूरज के आगै।
पथ में बाधा आवैली पर तूं चलतो ई रीजै,
दिवलो नहीं बुझै आसा को गांठ बांध लीजै।
द्वार बंद जै हुया तो नुवां झरोखा खुल जासी,
नुवीं किरण थारो पथ आलौकित करबा आसी।
धीरज की पेड़्यां चढ़तो जा हिम्मत कै सागै,
कांई मोल अंधारे को ईं सूरज के आगै।
कूंपळ फूट पड़ै भाटां पर जै कुदरत चावै,
कदै-कदै तो मगरां में ई मोती मिल जावै।
बस करतो जा करम छोड़ दे कुदरत पर बाकी,
देख ईंया ई चालैली ईं जीवन की चाकी।
चिंता की तूं पोट फेर क्यों सर बांधण लागै,
कांई मोल अंधारै को ईं सूरज कै आगै।