अे सिणगार्या बदळ,
तू बरसा झरमर झरमर।
ज्यूं हेत हिया म्हे उणंग,
कुआं बावड़ी सरवर।
हे इन्दर का दूत धरा को सांचो सेवक बणजा।
कतरा दुख आतप धरती क’ अेक अेक ने गिणजा।
देजा हरी भरी सी चूनर।
राजी हो ज्या थांसूं पुरन्दर।
पूजा और अर्चना जारी, गांव गांव हर मन्दर-
अे सिणगार्या बादळ...
दूध दही छाछ राबड़ी, मिलसी चणां चबैणा।
थांरे बरस्यां सूं कम होसी साहूकार का देणा।
तू सांचो सुख को साथी।
तू राग मल्हार प्रभाती।
थार’ खातर ही थरप्या छ’ जेपर जन्त मंतर-
अे सिणगार्या बादळ...
मेघ बरण का देव बताता आया सभी पुराण।
राम सांवळा सा बादळ अर राधा का घनश्याम।
बरसो बरसो सभी पुकार’
प्रजा थांप’ काजळ सार’
थांप, सरजीवण बूंटी छ’, सींचो अमरत भर भर-
अे सिणगार्या बादळ...
जीव जिनावर पंख पखेरू थांरी बाट उडीक’।
आज कन्हैया हे'र थक्यो छ’ माखन छींक’ छींक’।
तू बरस्यां सूं ही सुख पावां।
तू बरस’ तो नाचां गावां।
थांरी दानी गेह गळा'र मत फर अम्बर अम्बर-
अे सिणगार्या बादळ...