कोई देखै फर-फर, कोई आह भर-भर

कोई कहे म्हारै लेखै, बैठी रै उमर भर

डील ऊपरै सरस्यूं फूली, सांसा में गंधावै घणों

छोरी धन-धन थारो मोट्यारपणो, जीपै मर-मर जावै जणों-जणों।

जवानी को जोड़ कांईं, ईं नशा को तोड़ कांईं

रूप की रकम छै या, जोड़ राखो पाई पाई

या पूंजी तो वा छै जीनैं, खरचो मत, बस गणो गणो

छोरी धन-धन थारो मोट्यारपणो, जीपै मर-मर जावै जणों-जणों।

प्यार में दिवानी लागै, रोस में सुहाणी लागै

फूल को पराग कदी, ओस की नूराणीं लागै

ईं उमर की अमरबेल पै, ईंको छै अहसान घणो।

छोरी धन-धन थारो मोट्यारपणो, जीपै मर-मर जावै जणों-जणों।

देवता को अंश ईं में, आग छै उजास छै

जिन्दगी कै ओळ्यूं-दोळ्यूं, ईंको महारास छै

ईंको कद ऊपर उट्ठे तो, पूगै छै आकास तणो!

छोरी धन-धन थारो मोट्यारपणो, जीपै मर-मर जावै जणों-जणों।

स्रोत
  • पोथी : पाणी मै चाँद घुळै छै ,
  • सिरजक : दुर्गादान सिंह गौड़ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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