धरती रौ कण-कण व्है सजीव,

मुरधर में जीवण लहरायो।

वा आज कळायण घिर आई,

बादळ अंबर में गहरायो॥

वा स्याम-वरण उतराद-दिसा,

भूरोड़ै-भुरजां री छाया।

लख मोर मोद सूं नाच उठयो,

वे पंख हवा में छितरायां॥

तिसियारै-धोरां पर जल-कण,

आभै सूं उतर-उतर आया।

ज्यूं व्है पुळकित मन, मेघ, बंधु,

मरुधर पर मोती बरसाया॥

वो अट्टहास सुण बादळ रौ,

धारोळा धरती पर आया।

धड़कै सूं अबर धूज उठयो,

कांपी चपळा री कुश-काया॥

पण रुक-रुक नै, धीर-धीरे,

वां बूंदां रौ कम हुयौ वेग।

यूं कर अमोल-निधि निछरावळ,

यूं बरस-बरस मिट गया मेघ॥

पणघट पर डेडर डहक उठया,

सरवर रौ हिवड़ौ हुळसायो।

चातक रौ मधुर पीहू रौ स्वर,

उन्मुक्त-गगन में सरसायो॥

मुरधर रै धोरां दूर हुई,

वा दुखड़ै री छाया गहरी।

आई सावण री तीज-सुखद,

गूंजी गीतां में सुर-लहरी॥

झूलां रा झुकता पैंग देख,

तरुणां रौ हिवड़ौ हरसायो।

सुण पड़ी चूड़ियां री खण-खण,

वो चीर हवा में लहरायो॥

अै रजवट रा कर्मठ-किसान,

मेहनत रा रूप, जका नाहर।

धरती री छाती चीर-चीर,

अै धान उगा लावै बाहर॥

उण मेहनत रौ फळ देवण नै,

सुखदायक-चौमासौ आयो।

धरती रौ कण-कण व्है सजीव,

मुरधर में जीवण लहरायो॥

स्रोत
  • सिरजक : मनुज देपावत
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