बणज्यारी न्हाबा चाली रै परवण नन्दी की तीरां

नाजुक डीळ मरोड़ा खावै चाली धीरां धीरां

बैठ पटपड़ै हाथ पाँव को मेल रगड़बा लागी

ऊबी हो मच्छ्याँ कुदरत को काम देखबा लागी

मीठी मुलकण असी, काळज्यो करगी लीरां लीरां

बणज्यारी न्हाबा चाली रै परवण नन्दी की तीरां

छबकी स्वा पाणी सूँ हीरी हिऐ बीजळी लागी

सरम धाम ने छोड़ जाणै परी धरा पे आगी

रोम रोम तन घायल करती नजर्‌यां की तीरां

बणज्यारी न्हाबा चाली रै परवण नन्दी की तीरां

लाल घाघरो, काली कुड़ती, सुवा की सी नाक

हरणी की सी चाल, आँख्यां ज्यूँ कैरी की फाँक

बगड़ावत छलबा नै आई जश्याँ गूजरी हीरां

बणज्यारी न्हाबा चाली रै परवण नन्दी की तीरां

उगता सा सूरज की लाली धरती ज्यूँ गालां पै

नागण सी कम्पर पै चोटी गरब छणा बालां पै

रूप अस्यो जाणै कुदरत ने भर्‌यो कटोरो खीरां

बणज्यारी न्हाबा चाली रै परवण नन्दी की तीरां

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : जगदीश झालावाड़ी ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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