बादळी जद बरसण लागी।
कामणी सूती-सी जागी॥
मेवलो टपटप यूं बरसै
नैण बिरहण रा ज्यूं तरसै।
कळायण उमटी च्यारूँमेर
घाघरो छाग्यो घेर घुमेर।
दामणी दमक रही घणघोर
टऊका मारै बन रा मोर।
सूवटा रस बरसा ज्यावै
पपइया पिउ—पिउ कर गावै।
तिरस धरती धण री भागी।
बादळी जद बरसण लागी॥
सावणी रुत चंवरी चढगी
भादवै जोबन मद भरगी।
आसोजां मोती बरसैला
धान री झाल भरीजैला।
मुळकता करसा आवै है
हरख स्यूं तेजो गावै है।
रेत रो हेत बण्यो सागी।
बादळी जद बरसण लागी॥
सरोवर—ताल नदी—नाळा
पड़ै चांदी—सा परनाळा।
कदै रिमझिम—रिमझिम होवै
बादळी छानै—सी रोवै।
फेर बरसै इमरत धारा
खेत में होज्या पौबारा।
आभै इन्दर धणख छावै
डोकरी सावण री गावै।
आस अब खेतां में जागी
बादळी जद बरसण लागी॥
थाळ मोत्यां सूं भर ज्यावै
रामजी चोखा दिन आवै।
मतीरा काकड़िया मीठा
मोरल्यो हाथां सूं सिट्टा।
फळी—काचर चोखा लागै
राबड़ी देख भूख भागै।
घटूल्यो घरड़—घरड़ बोलै
बिलौणा घमड़—घमड़ डोलै।
पटेलण क्यूं रेवै नागी
बादळी जद बरसण लागी॥