रुत आई रे पपैया थारे, बोलण री, रुत आई।

जेठ मास री लूवा रे बीती, अब सुरंगी रुत आई रे।

रुत आई रे पपैया थारे बोलण री, रुत आई रे॥

असाढ़ उतरियो, सावण लाग्यो काली घटा घिर आई रे।

कदे'यक झोला चलै सूरियो, धीमी-धीमी पुरवाई रे।

रुत आई रे पपैया थारी, बोलण री, रुत आई रे॥

मोठ बाजरी सूं खेत लहरकै, बन-बन हरियाली छाई रे।

रुत आयी रे पपैया थारे बोलण री, रुत आई रे॥

झिरमिर-झिरमिर मेहड़ो बरसे, स्याम बदली घिर आई रे।

रुत आई रे पपैया, थारे बोलण री, रुत आई रे॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी लोकगीत ,
  • संपादक : पुरुषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै