इतळ-पीतळ रो भर लाई बेवड़ौ
रे झांझरिया म्हारा छैल
कोई कांख मांयला टाबरिया री आण
मैं जाऊं रे जाऊं रे पीवरियै
सासू बोलै छै म्हानै बोलणा
रे झांझरिया म्हारा छैल
कोई बाईसा देवै रे म्हानै गाळ
मैं जाऊं रे जाऊं रे पीवरियै
आया बीरो सा म्हानै लेवा ने
रे झांझरिया म्हारा छैल
थ्हारी कांई-कांई करूं मनवार
मैं जाऊं रे जाऊं रे पीवरियै
थारै मनाया देवर ना मानू
रे झांझरिया म्हारा छैल
थारा बडोड़ा बीरोसा नै भेज
मैं जाऊं रे जाऊं रे पीवरियै
काळी पड़‌गी रे मन की कामळी
रे झांझरिया म्हारा छैल
म्हारा आलीजा पै म्हारौ सांचौ जीव
मैं जाऊं रे जाऊं रे सासरिये।

इतल-पीतल का बेवड़ा

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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