उड रे सूवा लाखीणा
उड उड जाई म्हारै पिवरियै
सूवा लाखीणा
जाय म्हारा बाबोसा नै यूं कहिजै
थांरी धीव झूरै परदेस
सूवा लाखीणा
म्हारी मावङ नै सुणता मत कहिजै
वारां पेट बळेला आखी रात
सूवा लाखीणा।

तोता

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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