ज्वार

मेह फूटा हरिया हुआ
हाळीजी हळजुड़ो संभाळो
हाल पुरीजै मेड़तै
हळ पुरीजै अजमेर
कोठी खोलां
काडां कोड्याळी जुवार।

 

ज्वार

बारिश हुई धरती हरी हुई

हे कृषक हल और जुआ संभालो

हाल बन रही मेड़ता में

हल बन रहा अजमेर में

कोठी खोलेंगे

निकालेंगे मनभावन ज्वार।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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