आज तो सहेल्यां म्हारी, घटा उमटी

रुक-रुक चालै सूरियो।

कहो तो सहेल्यां, आपां बागों में चालां

अमवा री डाळी हींडो घाल्यो,

रेसम डोर बँधायो।

कहो तो सहेल्यां आपां बागों में चालां

बागाँ में हींडो घलायो।

माली की बेटी म्हाने झाल्या देगी,

झूलो म्हारे मन भायो

कहो तो सहेल्यां, आपां बागों में चालां

बागाँ में हींडो घलायो।

सात सहेल्यां आपां

म्हारे मन कोड'ज छायो

कहो तो सहेल्यां आपां बागों में चालां

बागाँ में हींडो घलायो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी लोकगीत ,
  • संपादक : पुरुषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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