कूकड़ा रै लाल थनै मोल लियौ काळ में
थूं तौ व्हैगो जोध जवान
कूकड़ा रै लाल थनै आंगणियै बिखेरूं डोडा अेळची
थूं म्हारै आंगण चुगवा आव
अे बाई थारौ आंगणियों चरचरौ
म्हारी चुगता री दुखै चांच
कूकड़ा रै लाल थारै हाथां-पगां में बांधू घूघरा
रिमझिम करतौ आव
अे बाई थारी सासू बूढ़ी डोकरी
म्हनै चुगता नै देवै गाळ
कूकड़ा रै लाल म्हारी सासू बूढ़ी डोकरी।
आज मरै परभात
थूं म्हारै आंगण चुगवा आव
अे बाई थारौ देवर लाडलौ
म्हनै चुगता नै देवै गाळ
देवर नै मेलूं गढ री चाकरी
दैराणी नै मेलूं पीहर
थूं म्हारै आंगण चुगवा आव
अे बाई थारी नणदल लाडली
म्हनै चुगता नै देवै गाळ
कूकड़ा रै लाल नणदल म्हारी चिड़कौली
आज उडै परभात
थूं म्हारै आंगण चुगवा आव।

मुर्गा

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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