माली का रे खिड़की खोल भंवर उभा बारणै।
आओ कँवरां बैठो नी पास, कांई तो कारण आया?
म्हां की धण नै पैलो जी मास, नारंगी में मन गयो जी।
नारंगी रा लागै छै हजार, कलियां रा पूरा डोड़ सै जी॥
नारंगी रा द्यालां हज़ार, कलियां रा पूरा डोड़ सै जी।
पैली खाई खाटी लागी, दूजी खट-मीठी लागी॥
तीजी नै बींदड़ राजा जनम लियो।
म्हारी धरण नै दूजो जी मास, नारंगी में मन गयो॥
म्हारी धण नै तीजो जी मास, नारंगी में मन गयो।
म्हारी धण नै चौथो जी मास, नारंगी में मन गयो॥
म्हारी धण नै पाँचवों जी मास, नारंगी में मन गयो।
म्हारी धण नै छठो जी मास, नारंगी में मन गयो॥
म्हारी धण नै सातवों जी मास, नारंगी में मन गयो।
म्हारी धण नै आठवों जी मास, नारंगी में मन गयो।
म्हारी धण नै पूरा जी मास, नारंगी में मन रह्यो॥