म्है आया जी डौड्यां कै बारणै
मांयी घमोड़ै माटलौ
घमोड़ै जी ईसर जी का नार
सूरज जी का नार
डीगा गौरा पातळा
अब जागौ जी बाईसा का बीर
बायर ऊबा औळग्या
औळग्यां नै औळगदयौ
दयौ सिंघासण बैसणा
दैस्यां जी दिल्ली कौ राज
आधौ मांडण मेड़तौ
निपज ये कोड्यांळी जुंवार
हरिया मूंग मरोड़स्या
हरियै गोबर गंवळी* ल्याय
मौत्यां चौक पूरावस्यां
मौत्यां का दौ आखा* ल्याय
गौर पूज्यां घर आवस्यां

*गंवळी—पुत्री या बहू की विदाई की वेला से पूर्व 'थली' पूजने का कार्यक्रम होता है। गाय के गोबर का छोटा पिंडलिया सा बनाकर इसमें हरी दूब रोपी जाती है जिसे 'थली' पूजते समय रखा जाता है।
 
*आखा—घर में मांगलिक अवसर पर आँगन को गोबर से लीपा जाता है। गोबर से लीपने के पश्चात उसमें गेहूँ या बाजरी के दाने बिखेरे जाते हैं इन्हें चुगने चिड़ियाएँ आती है और अध सूखे आँगन में अपने नन्हें-नन्हें पैरों के मांडणे मांड देती है।

हम आयी ड्यौढी के द्वार पर

भीतर बिलौना करने की आवाज सुनायी दी

बिलौना कर रहे हैं ईसर जी की पत्नी

सूर्य देव की पत्नी

वे लम्बे गौर वर्णी इकहरे बदन वाले हैं

अब तो उठिए बाईसा के बीर

बाहर आपके सेवक खड़े हैं

सेवकों को सेवा का अवसर प्रदान करेंगे

उन्हें बैठने के लिए उचित आसन दो

उन्हें देंगे दिल्ली का राज्य

आधा मेड़ते का राज्य भी

वहाँ उत्पन्न होती है कोड़ियों जैसी सुंदर ज्वार

हरे मूंग भी लायेंगे

हरे गोबर की 'गंवळी' लाकर

मोतियों से चौक पूरायेंगे

मोतियों के दो आखे लाकर

गौरी पूजन करके घर आयेंगे

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर
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