अैळ-खैळ नंदी जाय
औ पाणी कठै जासी रै
आधौ जासी अळ्यां-गळ्यां
आधौ ईसर न्हासी जी
ईसर के बधावौ आयौ
गौरां जाया बेटा जी
अड़दा तांणू पड़दा तांणू
बांदरवाळ बंधावौ रै
सार के री सूई ल्यावौ
पाट केरा तागा रै
दरियायी को बटकौ ल्यावौ
सैड़-सैड़ सिंवौ रै
दौड़ौ रै भतीजा थांका भुवा ल्याया बागा रै
भुवा रै भरोसै भतीजा रैगा नागा रै
नागा-नागा कांयी करौ
म्है और सिंवास्यां बागा जी
ढोलणी रै ढमकै नांदेरै लिआस्यां जी
मोचड़ी रै मचकै दादेरै पहुंचास्यां जी
सोना का जक झूमरिया
रूपां का मादळिया जी
गाडौ भर गंवा को ल्याया
ऊपर घी को चाडौ रै
चाडा ऊपर चूंदड़ ल्याया
बायां नै औडास्यां रै
चाडा ऊपर पीळौ* ल्याया
बहूवां नै औडास्यां रै
 
* पीळौ—पीळा ओढ़ना किसी भी स्त्री के लिए सौभाग्यता का सूचक है। पुत्र जन्म के अवसर पर होने वाले 'न्हावण' पर बहू के पीहर पक्ष की ओर से 'पीला' नामक ओढ़नी लायी जाती है। 

सर्पिला मार्ग बनाए हुए नदी बह रही है

यह पानी कहाँ जायेगा रे

आधा जायेगा इधर-उधर गलियों में

आधे से ईसर स्नान करेंगे

ईसर के बधावा आया

गौर ने पुत्र को जन्म दिया

तम्बू पर्दे तानो

द्वारों पर बंदनवार बंधवाओ

सार जैसी सूई लाओ

पाट जैसे तागे

'दरियायी' का टुकड़ा लाओ

शीघ्रता से सिलाई करवाओ

दौड़ों रे भतीजों तुम्हारी बुआ लायी है नये-नये वस्त्र

बुआ के भरोसे भतीजे रह गए नंगे

नंगे-नंगे क्या कर रहे हो

हम और सिलवायेंगे कपड़े

पलंग के पाये के बल पर तुम्हे ननिहाल ले चलेंगे

जूती के जोर पर 'दादरै' पहुँचा देंगे

सोने के घुँघरू वाले झूमकिये

रूपा के मादलिये देंगे

गाड़ी भर कर गेंहूओं की लाये

ऊपर घी का 'चाडा' लाये

'चाडा' के ऊपर चुनरी लाये

बहिनों को ओढ़ायेंगे

चाडे के ऊपर पीला लाये

बहुओं को ओढ़ायेंगे

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : 1
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