चरखौ तो ले ल्यूं, भंवरजी, रांगलो जी
हां जी ढोला, पीढा लाल गुलाल
तकवो तो ले ल्यूं जी, भंवरजी,
बीजलसार को जी
ओ जी म्हारी जोड़ी रा भरतार
पूणी मंगा ल्यूं जी कै बीकाणै की जी
होळै-होळै कातूं भंवर जी, कूकड़ी जी
हां जी ढोला, रोक रुपयै रो तार
म्हैं कातूं थे बैठा विणज ल्यो जी
ओ जी म्हारी लाल नणद रा ओ वीर
अब घर आओ प्यारी नै पलक न आवड़ै जी
गौरी री कमाई खा 'सी रांडिया रे
हां अे गौरी, कै गांधी कै मणियार
म्हे छां बेटा साहूकार रा जी
अे  जी म्हारी घणी अे प्यारी नार
गौरी री कमाई सूं पूरा न पड़ै जी..॥

चरखा

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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