कौण चिणायो झालरो, कौण लगाई गज नीत्र।

पूज सुहागण जच्चा झालरो।

सुसर चिणायो झालरो, जेठजी लगाई गज नीव।

कौण की या कुल बहू, कौण की या धीय।

सुसराजी की कुल बहू, सात पाचा की है धीय।

भाई तो बहन सहोदरा, पिया की बडनार।

ओढ पहर जचा नीसरी, थाना गाजी के वजारे।

मांढो तो चूंढो कूलडो, गाढो भी लियां माय।

या कूलडो जब नीकले होकर जलवा माय,

कोथली को मूंडो सांकडो घुल रही रेशम डोर।

दे थारा डूम खवास ने सास ननद पहराय।

बहुए विवाई माता थे जायो सुलखणो पूत।

पूज सुहागण जच्चा झालरो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी लोकगीत ,
  • संपादक : पुरुषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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